सर्वोच्च न्यायालय ने 2004 के ईवी चिन्नैया के फैसले को छह के मुकाबले एक मत वाले फैसले से खारिज कर दिया। ईवी चिन्नैया ने अपने फैसले में कहा था कि अनुसूचित जाति के आरक्षण का उप-वर्गीकरण भर्तियों और सरकारी नौकरियों में स्वीकार्य नहीं है।
Site Admin | अगस्त 1, 2024 1:56 अपराह्न | Quota within Quota | SC-ST Reservation | Supreme Court
सर्वोच्च न्यायालय ने आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय में सात न्यायाधीशों की एक पीठ ने आज राज्य के विधानमंडल द्वारा अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति देने संबंधी फैसला सुनाया।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में ऐतिहासिक साक्ष्य का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति सवर्ण नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इसका उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं है। अनुच्छेद 15 और 16 किसी राज्य को एक जाति का उप-वर्गीकरण करने से नहीं रोकते हैं।
इससे पहले इस वर्ष आठ फरवरी को सर्वोच्च न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अन्य न्यायविदों के तर्क सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार ने माना है कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में वर्गीकरण किए जाने के पक्ष में है।
2004 में ईवी चिन्नैया ने अपने फैसले में कहा था कि केवल संसद, न कि राज्य विधानसभाएं, संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जाति समझी जाने वाली जातियों को राष्ट्रपति सूची से बाहर कर सकती है।