महाराष्ट्र सरकार ने विद्यालयों में शारीरिक और मानसिक दंड पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध से शिक्षा का अधिकार-आरटीई अधिनियम, 2009 के प्रावधानों विशेष रूप से धारा 17 को सुदृढ़ किया गया है। इस संबंध में कल एक नया सरकारी प्रस्ताव जारी किया गया। शिक्षकों, प्रधानाध्यापकों और यहां तक कि अस्थायी या संविदा कर्मचारियों को भी किसी भी परिस्थिति में विद्यार्थियों को दंडित करने की अनुमति नहीं है।
इस प्रस्ताव में विद्यार्थियों में मनोवैज्ञानिक पीड़ा या हीनता की भावना उत्पन्न करने जैसे मौखिक दुर्व्यवहार, ताना मारना, आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग या ऐसा कोई भी व्यवहार प्रतिबंधित है। प्रस्ताव के अनुसार शैक्षणिक प्रदर्शन, जाति, धर्म, लिंग, भाषा, विकलांगता या सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के आधार पर भेदभाव को दंडनीय अपराध माना जाएगा।