पिछले ग्यारह वर्षों में, भारत का कृषि क्षेत्र एक मौन क्रांति का गवाह रहा है। इसके पीछे “बीज से बाजार तक” के दृष्टिकोण की प्रेरणा रही है। कृषि में सरकार का बजट आवंटन लगभग पांच गुना बढ़ा है। 2013-14 में यह 28 हज़ार करोड़ रुपये था जो 2024-25 में एक लाख 37 हजार करोड़ रुपये हो गया है।
प्रधानमंत्री किसान योजना के अंतर्गत तीन लाख 70 हजार करोड़ रूपये से अधिक की धनराशि 11 करोड़ किसानों तक सीधे पहुंचाई गई हैं। किसानों के लिए वित्तीय सुरक्षा में भी सुधार हुआ है।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना ने 10 लाख करोड़ रुपये का ऋण दिया है, जबकि फ़सल बीमा योजना से लगभग 20 करोड़ किसानों को लाभ हुआ है जिनके एक लाख 75 हजार करोड़ रुपये के फ़सल बीमा दावों को निपटाया गया। गेहूं, धान, दलहन और तिलहन जैसी प्रमुख फ़सलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में भारी बढ़ोतरी हुई है।
सोलर पंपों के लिए पीएम-कुसुम और प्राकृतिक खेती मिशन जैसी योजनाओं से कृषि क्षेत्र में मजबूती और स्थिरता को बढ़ावा मिला है। पीएम कृषि सिंचाई योजना और मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना ने सिंचाई और मृदा उत्पादकता को मजबूत किया है और किसानों को आधुनिक उपकरणों और वैज्ञानिक जानकारी के साथ सशक्त बनाया है।
सरकार ने संबद्ध क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित किया है। दूध उत्पादन में 63 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, जिससे भारत दुनिया का शीर्ष डेयरी उत्पादक बन गया है। इससे दुग्ध उत्पादन से जुडें 8 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ हुआ है।
मछली पालन में, भारत का उत्पादन दस वर्षों में लगभग दोगुना हो गया, जिससे ग्रामीण आजीविका और तटीय समृद्धि को बढ़ावा मिला। आज, भारतीय किसान न केवल एक कृषक के रूप में, बल्कि राष्ट्रीय विकास में प्रमुख योगदान कर्ता के रूप में खड़ा है।