केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कल स्वच्छ ऊर्जा अनुकूलन के वित्तीय पक्ष को लेकर भारत के प्रयासों और अनुभवों तथा विकासशील देशों के सामने आने वाली बाधाओं का उल्लेख करते हुए अनुकूलन लक्ष्य बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों का सुझाव दिया। ब्राज़ील के बेलेम में तीसवें संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन कॉप-30 के दौरान स्वच्छ ऊर्जा अनुकूलन पर बाकू उच्च-स्तरीय संवाद में श्री यादव ने वैश्विक संपन्नता भेद को दूर करने के लिए वित्तीय मदद बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता बताई। पेरिस समझौते की 10वीं वर्षगांठ पर श्री यादव ने समझौते के अनुच्छेद 7.6 के महत्व पर ज़ोर दिया और कहा कि वर्ष 2025 की रिपोर्ट के अनुसार विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा उपायों के लिए 2035 तक सालाना 310 अरब से 365 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी, जबकि अभी उन्हें लगभग 26 अरब डॉलर ही मिल रहा है।
केंद्रीय मंत्री यादव ने कहा कि विकासशील देशों को पूर्व अनुमानित व्यापक, अनुदान-आधारित और रियायती वित्तीय सहायता देना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दर पर सार्वजनिक अनुकूलन वित्त को 2019 के स्तर से दोगुना कर 2025 तक लगभग 40 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का ग्लासगो जलवायु समझौते का लक्ष्य संभवतः पूरा नहीं हो पाएगा। उन्होंने कहा कि बाकू सम्मेलन से बेलेम भविष्य योजना में उल्लिखित जलवायु वित्तीय योगदान को एक लाख तीस हज़ार करोड़ डॉलर के स्तर तक बढ़ाने के लिए वैश्विक सामूहिक प्रयास होना चाहिए।
केंद्रीय मंत्री यादव ने इन चुनौतियों के बावजूद स्वच्छ ऊर्जा अनुकूलन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि भारत घरेलू संसाधन समर्थित राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय योजनाओं द्वारा इसके लिए लगातार प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत में भारत का अनुकूलन-संबंधी व्यय 2016-17 से 2022-23 तक सात वर्षों में 150 प्रतिशत बढ़ा है। श्री यादव ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने मान्यता प्राप्त संस्थाओं की संस्थागत क्षमता-निर्माण के माध्यम से जलवायु वित्त तक पहुँचने की अपनी क्षमता को मजबूत किया है।