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जुलाई 23, 2025 6:36 अपराह्न

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23 जुलाई 1927 में शुरू हुआ रेडियो का सफर आज भी बना हुआ है प्रासंगिक

भारत के विकास, शैक्षिक प्रसार और सांस्कृतिक संरक्षण में प्रसारण की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के लिए आज देशभर में राष्ट्रीय प्रसारण दिवस मनाया जा रहा है। 1927 में आज ही के दिन, देश में पहला रेडियो प्रसारण, इंडियन ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी के बॉम्बे स्टेशन से शुरू हुआ था।

 

आठ जून, 1936 को, इंडियन स्‍टेट ब्रॉडकॉस्टिंग सर्विस का नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो-एआईआर कर दिया गया और फिर बाद में इसका नाम आकाशवाणी रखा गया। आकाशवाणी ने वर्षों से, विविध श्रोताओं तक व्यापक पहुँच के साथ अपनी जगह पक्की की है।

 

जैसे जैसे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सूचना के प्रसार और एकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता बढ़ी, रेडियो ने जन-जन तक पहुँचने वाले एक प्रभावी माध्यम के रूप में अपनी जगह मज़बूत की। स्वतंत्रता के बाद, यह माध्यम साक्षरता, स्वास्थ्य जागरूकता और कृषि ज्ञान को बढ़ावा देने में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, सहायक सिद्ध हुआ। बाद में 1956 में प्रसारक का नाम आकाशवाणी हो गया।

 

इसके बाद, 1957 में विविध भारती सेवा शुरू की गई, जिसका मुख्य उद्देश्य लोकप्रिय फ़िल्म संगीत था। पिछले कुछ वर्षों में, आकाशवाणी ने सोशल मीडिया हैंडल, न्यूज़ऑनएयर मोबाइल ऐप, पॉडकास्ट सीरीज़ के माध्यम से डिजिटल क्षेत्र में भी अपनी पहुँच बढ़ाई है, जिससे वर्तमान पीढ़ी के साथ इसकी प्रासंगिकता स्थापित हुई है।

 

इस अवसर प्रसार भारती के अध्यक्ष नवनीत कुमार सहगल ने कहा कि आकाशवाणी वर्षों से शिक्षा, सूचना और मनोरंजन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि अगले वर्ष आकाशवाणी लोक प्रसारक के रूप में 90 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाएगा।

 

प्रसार भारती के सीईओ गौरव द्विवेदी ने कहा कि 90 वर्ष पुरानी राष्ट्रीय धरोहर के रूप में आकाशवाणी आज भी मज़बूती से आगे बढ़ रहा है, और समय के साथ तालमेल बिठा रहा है और दर्शकों को जोड़े हुए है।

 

वहीं आकाशवाणी की महानिदेशक डॉ. प्रज्ञा पालीवाल गौड़ ने कहा कि जैसे-जैसे हम इन ऐतिहासिक पड़ावों के करीब पहुँच रहे हैं, आकाशवाणी नए सिरे से प्रासंगिक और भविष्य के लिए तैयार है। उन्होंने बताया कि भारतीय प्रसारण की यात्रा परिवर्तनकारी और राष्ट्र निर्माणकारी रही है।

 

 अपनी स्थापना के बाद से इन नवासी वर्षों में, आकाशवाणी ने उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक राष्ट्र के लोगों से संवाद किया है और जनता को सूचित, शिक्षित और मनोरंजन करने तथा बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के अपने आदर्श वाक्य पर खरा उतरने का प्रयास किया है।

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