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केन्द्र सरकार की नई बायो-E3 नीति अगली औद्योगिक क्रांति में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर

BioE3 Policy: जैव प्रौद्योगिकी नीति को एक नई दिशा देने के लिए केन्द्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने औपचारिक रूप से नई बायो-E3 नीति पत्र जारी किया। यह नीति भारत को अगली औद्योगिक क्रांति में वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर करेगी तथा सतत विकास को बढ़ावा देगी।

 

बायो-E3 का मतलब अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी है। यानी Biotechnology for Economy, Environment and Employment है। यह नीति देश की आर्थिक प्रगति, पर्यावरण संरक्षण और रोजगार सृजन के लिए जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

 

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा बायोE3 नीति के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है। इस नीति का का मकसद भारत सरकार की राष्ट्रीय पहलों जैसे ‘नेट जीरो’ कार्बन अर्थव्यवस्था और मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) के साथ ‘उच्च प्रदर्शन वाले बायोमैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना’ है। उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण में, दवा से लेकर कई अन्य सामग्री का उत्पादन करने, खेती और खाद्य चुनौतियों का समाधान करने और उन्नत जैव-प्रौद्योगिकीय प्रक्रियाओं के एकीकरण के माध्यम से जैव-आधारित उत्पादों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की क्षमता है।

 

 

बायो-E3 नीति का उद्देश्य

 

उच्च प्रदर्शन वाले जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए बायो-E3 नीति का उद्देश्य विशेष रूप से तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना है। इसके तहत (1) अर्थव्यवस्था: जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना। (2) पर्यावरण: जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कर पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को बढ़ावा देना तथा (3) रोजगार: नई नौकरियों के सृजन और कौशल विकास से युवा शक्ति को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।

 

बायो-E3 नीति का खाद्य, ऊर्जा और स्वास्थ्य पर भी प्रभाव

 

बायो-E3 नीति का खाद्य, ऊर्जा और स्वास्थ्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। आमतौर पर यह नीति 6 निम्नलिखित क्षेत्रों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी। 1. जैव-आधारित रसायन और एंजाइम 2. कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन 3. सटीक जैव चिकित्सा 4. जलवायु अनुकूल कृषि 5. कार्बन कैप्चर और उसका उपयोग 6. भविष्य के समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान। इसके साथ ही पीपीपी मॉडल बायो-E3 नीति का एक अभिन्न अंग होगा, जो रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए उद्योग को प्रोत्साहित करेगा।

 

बायो-E3 नीति जैव अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर

 

बायो-E3 नीति न केवल जैव अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित होगी, बल्कि 2047 में विकसित भारत के लिए भी एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम साबित होगी। पिछले 10 वर्षों में भारत की जैव अर्थव्यवस्था की बात करें तो 2014 में 10 बिलियन डॉलर थी जो कि बढ़कर 2024 में 130 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई है। जैव अर्थव्यवस्था का 2030 तक 300 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। 21वीं पीढ़ी की अगली क्रांति को आगे बढ़ाने के लिए जैव प्रौद्योगिकी में अपार संभावनाएं हैं।

 

 विकसित भारत के लिए बायो-विजन

 

नई बायो-E3 नीति विकसित भारत के लिए बायो-विजन का निर्धारण करेगी। इसके साथ ही ‘चक्रीय जैव अर्थव्यवस्था’ को बढ़ावा देगी तथा भारत को ‘हरित विकास’ के मार्ग पर आगे बढ़ने में गति प्रदान करेगी।  नई बायो-E 3 नीति जलवायु परिवर्तन और घटते गैर-नवीकरणीय संसाधनों जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए बनाई गई है। इससे जैव-आधारित उत्पादों के विकास को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार सृजन में भी वृद्धि होगी। 

 

बायो-E3 नीति के कार्यान्वयन से आर्थिक विकास में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में निवेश और विकास से देश की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिलेगी। पर्यावरणीय सुधार से पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान में जैव प्रौद्योगिकी की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, पर्यावरणीय लक्ष्यों को भी प्राप्त करने में सहायक होगी। जबकि रोजगार के क्षेत्र में नई नौकरियों के सृजन और कौशल विकास से युवा शक्ति को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे।

 

भारत के विकास की एक नई पहल

 

यह भारत के विकास की एक नई पहल है, जो जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार को एक साथ सशक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इस नीति के सफल कार्यान्वयन से भारत न केवल एक वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी केंद्र बनेगा, बल्कि इसके साथ-साथ सतत विकास की दिशा में भी अग्रसर होगा। बायो-E3 नीति न केवल भारत की बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र में एक नई दिशा प्रदान करेगी, बल्कि देश के आर्थिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों को भी प्राप्त करने में सहायक होगी।

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