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अक्टूबर 1, 2024 6:48 अपराह्न

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हिमाचल किसान सभा ने वन्य जीव विभाग के नसबंदी के कारण बन्दरों की संख्या में कमी आने के दावे को सिरे से खारिज किया

हिमाचल किसान सभा ने वन्य जीव विभाग के उस दावे को सिरे से खारिज किया है, जिसमें उसने नसबंदी के कारण बन्दरों की संख्या में कमी आने का दावा किया है। हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि वैज्ञानिक तौर पर किसी भी जंगली जानवर की संख्या में कमी लाने के लिए उनकी कुल संख्या के कम से कम 80 फीसदी हिस्से की एक विशेष समय में एक साथ नसबंदी करना जरूरी है, जबकि वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि हर साल 2 से 4 प्रतिशत तक ही नसबंदी की गई है।

 

जिसका कोई प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। कई गांवों में बन्दरों के आतंक से पीड़ित होकर अनेक किसानों ने बंदरों जहर देकर मारा है। शिमला में जहां विभाग का विशेष जोर बन्दरों की संख्या को कम करने का है वहां इसका कोई प्रभाव नजर नहीं आता डॉ. तँवर ने कहा कि प्रदेश में बन्दरों की संख्या मे कमी आने के दावे का सर्वेक्षण होना चाहिए और इसकी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच होनी चाहिए।

 

डॉ. तँवर ने कहा कि किसी क्षेत्र विशेष में अगर क्षमता से ज्यादा जानवर हो जाते हैं तो उनका समाधान केवल सांईटिफिक किलिंग है। लेकिन हिमाचल में वन विभाग ने बन्दरों को वर्मिन घोषित करने  के बावजूद भी उनको मारने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। उस दौरान भी हिमाचल किसान सभा ने सरकार और विभाग को सुझाव दिया था कि वह प्रशिक्षित निशानेबाजों की टीमें बनाकर वन विभाग और विशेषज्ञों की निगरानी में बंदरों को मारा जाए।

 

किसान सभा राज्य कमेटी सदस्य जयशिव ठाकुर ने कहा कि जंगली जानवर अगर मानव आबादी में घुस रहे हैं तो इसके लिए जनता को दोषी ठहराना बिल्कुल भी सही नहीं है। इसके लिए विभाग की वनीकरण की नीति दोषी है। गैर फलदार पौधे रोपने के कारण जंगली भोजन पर निर्भर रहने वाले वन्य प्रणियों को मजबूरन भोजन की तलाश में आबादी की ओर  निकलना पड़ रहा है।