सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों द्वारा सुनवाई पूरी होने के बावजूद फैसला सुनाने में लंबी देरी करने पर कड़ा रूख अपनाया है। न्यायालय का कहना है कि ऐसी स्थिति से न्यायिक प्रक्रिया में याचिकाकर्ता का भरोसा टूटने लगता है। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि अगर फैसला सुरक्षित रखे जाने के बाद तीन महीने तक उसे नहीं सुनाए जाने पर रजिस्ट्रार जनरल को मुकदमे को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास लाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश संबंधित पीठ को दो सप्ताह के भीतर फैसला सुनाने को कहेंगे। अगर तब भी फैसला नहीं दिया जाता तो मुख्य न्यायाधीश किसी अन्य पीठ को मुकदमा सौंपेंगे। प्रत्येक उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को उसी महीने सुरक्षित फैसले नहीं सुनाये जाने वाले मुकदमों की सूची मुख्य न्यायाधीश को सौंपनी चाहिए और ऐसा तीन महीने तक करना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वर्ष 2008 से लंबित आपराधिक याचिका से जुड़ी विशेष अवकाश याचिका का निपटारा करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर हैरानी व्यक्त की। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय में याचिका की सुनवाई की तिथि से करीब एक वर्ष तक फैसला नहीं दिया गया।