सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को अपना आदेश लागू करने के लिए चार महीने का समय दिया है। इस वर्ष के शुरू में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित दिव्यांगजनों को रोजगार का अवसर देने से मना नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति जे० बी० पारदीवाला और के० वी० विश्वनाथन की पीठ ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की तरफ से प्रस्तुत वकील का तर्क स्वीकार कर लिया। वकील ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय का आदेश लागू करने के नियम तय करने के लिए राज्य सरकार के साथ परामर्श किया जा रहा है। उन्होंने यह निर्णय लागू करने के लिए चार महीने का समय मांगा था।
सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक निर्णय में इस वर्ष मार्च में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमावली के प्रावधान रद्द कर दिये थे। इन नियमों के तहत दृष्टिबाधित व्यक्तियों को न्यायिक सेवाओं से वंछित किया जाता रहा है।
एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया था कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता।
न्यायमूर्ति संजय करोल और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों को रद्द कर दिया था। उच्च न्यायलय ने इन निर्देशों के तहत कहा था कि राज्य के जनजातीय क्षेत्रों में बेटियों को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत सम्पत्ति का अधिकार है, जनजातीय रिवाजों के तहत नहीं।