प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ को लेकर अपने विचार रखते हुए राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. और पर्यावरणविद् डॉ. सतेंद्र बाबू यादव ने कहा कि महाकुंभ मेला, जो हर बारहवें वर्ष आयोजित होता है, न केवल भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि यह सनातन धर्म के अद्वितीय तत्वों को भी सजीव करता है। उन्होंने कहा कि गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होने वाला यह आयोजन करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए मोक्ष और आध्यात्मिकता की अनुभूति का सबसे बड़ा माध्यम है।
महाकुंभ का पौराणिक महत्व
डॉ. सतेंद्र का कहना है कि महाकुंभ की जड़ें भारतीय पौराणिक कथाओं में गहराई तक समाई हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश निकला, तब देवताओं और असुरों के बीच इस अमृत को लेकर संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें इन चार स्थानों पर गिरीं, जहां आज महाकुंभ का आयोजन होता है। ये स्थान धर्म, अध्यात्म और शुद्धता का प्रतीक माने जाते हैं।
सनातनी परंपराओं का प्रतीक
डॉ. सतेंद्र कहते हैं कि कि महाकुंभ न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सनातन धर्म के मूल तत्वों को भी प्रदर्शित करता है। यह मेला योग, ध्यान, साधना और अध्यात्म का केंद्र है, जहां लाखों संत, महात्मा और साधु अपने ज्ञान और उपदेशों से लोगों का मार्गदर्शन करते हैं।
साधु-संतों की भूमिका:
डॉ. सतेंद्र ने साधु संतों की भूमिका पर भी बात की। उन्होंने कहा अखाड़ों और संतों का संगम इस आयोजन को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। सनातन परंपरा में अखाड़ों को धर्म के रक्षक माना गया है। महाकुंभ में इनकी उपस्थिति सनातन संस्कृति के जीवंत स्वरूप को दर्शाती है।
गंगा स्नान का महत्व:
गंगा स्नान के महत्व को समझाते हुए डॉ. सतेंद्र ने कहा कि महाकुंभ में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान गंगा का जल अमृत के समान पवित्र हो जाता है, जो मनुष्य के पापों को समाप्त कर उसे मोक्ष प्रदान करता है।
आधुनिक संदर्भ में महाकुंभ
डॉ. सतेंद्र ने महाकुंभ के आधुनिक संदर्भ पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि महाकुंभ न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है। लाखों विदेशी श्रद्धालु भी इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं और सनातन धर्म की समृद्ध परंपराओं को अनुभव करते हैं।
उन्होंने कहा कि महाकुंभ केवल धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की सनातन संस्कृति और उसकी शाश्वत परंपराओं का उत्सव है। यह आयोजन हमें याद दिलाता है कि हमारे धर्म और संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी और मजबूत हैं। महाकुंभ वास्तव में एक ऐसा दर्पण है, जो हमारी आध्यात्मिक धरोहर को प्रतिबिंबित करता है।