गृह मंत्री अमित शाह ने आज कहा कि वंदे मातरम भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को जागृत करने का मंत्र था और यह आज भी यह उतना ही प्रासंगिक है जितना स्वतंत्रता संग्राम के दौरान था।
राज्यसभा में आज वंदे मातरम गीत की 150वीं वर्षगांठ पर चर्चा की शुरूआत करते हुए श्री शाह ने कहा कि यह गीत देश के विकसित भारत बनने की दिशा में प्रासंगिक बना रहेगा।
गृह मंत्री ने वंदे मातरम पर बहस की ज़रूरत पर सवाल उठाने और इसे आगामी पश्चिम बंगाल चुनावों से जोड़ने के लिए कांग्रेस की आलोचना की।
श्री शाह ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी हर सभा की शुरुआत वंदे मातरम के गायन से करते थे और आज जब वीर सैनिक सीमा पर सर्वोच्च बलिदान देते हैं, तो वे भी वंदे मातरम का उच्चारण करते हैं।
श्री शाह ने कहा कि वंदे मातरम के माध्यम से बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने देश को माता के रूप में पूजने की संस्कृति, परंपरा और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की स्थापना की। गृह मंत्री ने कहा कि सभी प्रतिबंधों, अत्याचारों और अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए, वंदे मातरम ने देशवासियों के दिलों को छुआ और कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल गया।
उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का उदय सदियों से चले आ रहे इस्लामी आक्रमणों की पृष्ठभूमि में हुआ, जिसने देश की संस्कृति को कमजोर किया था और यह अंग्रेजों द्वारा नई सभ्यता और संस्कृति थोपने के प्रयास के जवाब में हुआ था।
गृह मंत्री ने कहा कि दोनों सदनों में वंदे मातरम पर चर्चा से आने वाली पीढ़ियों को इसके वास्तविक महत्व और गौरव को समझने में मदद मिलेगी।
चर्चा में भाग लेते हुए, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वंदे मातरम को नारा बनाया था। उन्होंने कहा कि जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया, तो कांग्रेस के लाखों स्वतंत्रता सेनानी वंदे मातरम का नारा लगाते हुए जेल गए।
श्री खरगे ने कहा कि वंदे मातरम गीत भारत के सार्वजनिक जीवन में तब आया जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कलकत्ता में कांग्रेस अधिवेशन में इसे पहली बार गाया था।
पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच.डी. देवेगौड़ा ने कहा कि वंदे मातरम देश को एकजुट करता है। उन्होंने कहा कि भारत के हर राज्य का अब एक राज्य गीत है जो वंदे मातरम से प्रेरणा लेता है।
डीएमके के तिरुचि शिवा ने कहा कि देश के उत्तरी हिस्सों के कई स्वतंत्रता सेनानी तमिलनाडु में लोकप्रिय हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को सीबीएसई के पाठ्यक्रम में तमिलनाडु के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पढ़ाना चाहिए।
ए.आई.ए.डी.एम.के. पार्टी के डॉ. एम थंबीदुरई ने कहा कि वंदे मातरम सिर्फ़ एक कविता नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी चिंगारी थी जिसने देश में देशभक्ति की भावना भर दी। उन्होंने कहा कि इस गीत ने लाला लाजपत राय, भगत सिंह और नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को प्रेरित किया।
एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि वंदे मातरम गीत पर चर्चा को राजनीति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस गीत ने लोगों में स्वतंत्रता संग्राम के लिए देशभक्ति की भावना जगाई।
शिवसेना के मिलिंद मुरली देवड़ा ने कहा कि वंदे मातरम 150 वर्ष बाद भी देश और दुनिया भर में गूंज रहा है क्योंकि यह धर्म और जाति से परे है।
वाईएसआरसीपी के एस निरंजन रेड्डी का गीत वंदे मातरम सभी के लिए एक प्रेरणा है क्योंकि यह देश की आजादी की लड़ाई के लिए विभिन्न लोगों, विभिन्न समुदायों और धर्मों को एक साथ लाता है।
इसके अलावा टीएमसी के सुखेंदु शेखर रॉय, सीपीआई (एम) के. वी. सिवादासन, आप के संजय सिंह, बीआरएस के केआर सुरेश रेड्डी, वाईएसआरसीपी के वाईवी सुब्बा रेड्डी, बीजद के मुजीबुल्ला खान, राजद के मनोज झा, भाजपा के घनश्याम तिवारी और डॉ के लक्ष्मण, मनोनीत सुधा मूर्ति और आईयूएमएल के हारिस बीरन ने भी चर्चा में भाग लिया। हारिस बीरन के भाषण के समापन के बाद, सभापति ने सदन की बैठक कल सुबह 11 बजे के लिए स्थगित कर दी।