जनजातीय क्षेत्रों मे मकानों के बाद अब लोगों को वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत वन भूमि बने खेतों-खलियानो के स्वामित्व मिलेंगे। जनजातीय इलाकों मे परिवारों मे बंटवारा होने और क्षेत्र मे सीमित कृषि भूमि उपलब्ध होने से किसानो के पास बेहद कम जमीन है। ऐसे मे वन अधिकार अधिनियम जनजातीय लोगों के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। केबिनेट मंत्री जगत सिंह नेगी ने कहा कि आम लोगों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों मे इस क़ानून को लेकर भ्रम कि स्थिति है। जबकि लाहौल स्पीति मे एफआरए के तहत सेकड़ों मामले लंबित हैं। कहा कि केलांग मे एफआरए पर आयोजित बैठक मे वन अधिकार अधिनियम को कार्यन्वित करने के लिए कार्यशाला आयोजित कि गई। नेगी ने कहा कि इस क़ानून के तहत लोगों को 50 बीघा जमीन का मालिकाना हक देने का प्रावधान है।
बशर्त लोगों का उस जमीन पर 2005 से पहले कब्जा होना चाहिए। जगत सिंह नेगी ने कहा कि इससे पहले सरकारी भूमि पर बने कई मकानों को इस अधिनियम के तहत रेगुलर किए गए हैं। जनजातीय इलाकों मे पैतृक कृषि भूमि कम होने के कारण लोग कई सालों से वन भूमि पर खेत बना कर कृषि करके अपनी आजीविका कमा रहे हैं। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत 2005 से पहले वन भूमि पर बने खेतों को नियमित करने का प्रावधान है। लिहाजा केबिनेट मंत्री ने जिला प्रशासन को एफ आर ए के अंतर्गत ऐसे मामलों को जल्द निपटाने का आदेश दिया है।
नेगी ने कहा कि सरकार की प्राथमिकता है कि इस क़ानून जनजातीय क्षेत्रों मे सबसे पहले लागु किया जाए। कहा कि इसके लिए ग्राम स्तर, उपमंडल और जिला स्तर की कमेटीयों की समय सीमा तय की कर सभी की जवाब देही सुनिश्चित की गई है। कहा कि जमीन के व्यक्तिगत दावों को पेश करने के लिए पहले कुछ निर्धारित साक्ष्ययों को प्रस्तुत करने होंगे।
नेगी ने कहा कि जनजातीय क्षेत्रों मे एफ आर ए क़ानून 2006 को एक मुहिम के तौर पर जनता के व्यापक हित मे लागु किया जाएगा। केबिनेट मंत्री जगत नेगी के आश्वासन के बाद जनजातीय लोगों मे एक उम्मीद बंधी है।