प्रदेश में वनाग्नि की रोकथाम और स्थानीय लोगों की आजीविका को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने पिरूल के संग्रहण की दर तीन रुपये से बढ़ाकर 10 रुपये प्रति किलो कर दी है। संयुक्त सचिव विक्रम सिंह यादव ने बताया कि इससे जहां पिरूल के संग्रहण में स्थानीय जन-मानस की अधिकाधिक भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी, वहीं, वनाग्नि की घटनाओं की रोकथाम में स्थानीय जनता का सहयोग भी मिलेगा। साथ ही ग्रामीण स्तर पर रोजगार सृजन भी हो सकेगा। गौरतलब है कि वनाग्नि की घटनाएं मुख्य रूप से चीड़ के जंगलों में होती है। चीड़ के पत्ते यानी पिरूल ग्रीष्मकाल के दौरान प्रचुर मात्रा में वन सतह पर गिरते हैं। उत्तराखंड में कुल वन क्षेत्र का लगभग 15 प्रतिशत चीड़ वन क्षेत्र है।