राज्यसभा में आज डीएमके सदस्य एम. मोहम्मद अब्दुल्ला द्वारा पेश एक निजी सदस्य प्रस्ताव पर चर्चा हुई। प्रस्ताव में सरकार से नीट और एनटीए को रद्द करने तथा मेडिकल कॉलेजों में दाखिलें फिर से राज्य सरकारों के मानदंडों के आधार पर करने का आग्रह किया गया है। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए सदन के नेता और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-नीट चिकित्सा शिक्षा के विभिन्न विषयों में प्रवेश के लिए एक मजबूत और व्यवस्थित प्रणाली है। उन्होंने सदस्यों से कहा कि नीट के माध्यम से गांव और दूरदराज के क्षेत्रों के छात्र एमबीबीएस और बीडीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश मिलता हैं। श्री नड्डा ने कहा कि पहले छात्रों को कई मेडिकल परीक्षाएं देने के लिए बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती थी। काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान भी काफी भ्रष्टाचार होता था। श्री नड्डा ने सदन को बताया कि वर्तमान में नीट 571 शहरों में आयोजित किया जा रहा है जो पहले 154 शहरों में आयोजित किया जाता था। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि परीक्षा अब 13 भाषाओं में आयोजित की जाती है और इससे सरकारी स्कूलों के छात्रों को फायदा हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि इस वर्ष नीट-स्नातक परीक्षा में शतप्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले सत्रह अभ्यर्थी केरल, तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश राज्यों से हैं।
इससे पहले प्रस्ताव पर बोलते हुए डीएमके सदस्य एम. मोहम्मद अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि नीट परीक्षा सीधे तौर पर सामाजिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है। उन्होंने सरकार से नीट को रद्द करने और विकेंद्रीकृत परीक्षा का विकल्प चुनने का आग्रह किया। चर्चा में भाग लेते हुए भाजपा के डॉ. अनिल सुखदेवराव बोंडे ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा कि मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए एक समान परीक्षा प्रक्रिया होनी चाहिए।
कांग्रेस के शक्तिसिंह गोहिल, तृणमूल कांग्रेस के जवाहर सरकार, आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा और सीपीआई (एम) के डॉ. जॉन ब्रिटास सहित अन्य सदस्यों ने भी चर्चा में भाग लिया।