संघ लोक सेवा आयोग-यूपीएससी ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के निर्देश के बाद नौकरशाही में लैटरल एंट्री से संबंधित विज्ञापन रद्द कर दिया है।
इससे पहले सरकार ने यूपीएससी को नौकरशाही में लैटरल एंट्री से संबंधित विज्ञापन को रद्द करने के निर्देश दिए थे। हाल ही में यूपीएससी ने केंद्रीय मंत्रालयों में 45 संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिवों को नियुक्त करने से संबंधित एक विज्ञापन जारी किया था। विपक्षी पार्टियों ने इस विज्ञापन पर प्रश्न उठाए थे। केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग मंत्री डॉ.जितेन्द्र सिंह ने यूपीएससी की अध्यक्ष प्रीति सूदन को लिखे पत्र में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मानना है कि लैटरल एंट्री की प्रक्रिया संविधान में समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धातों विशेषकर आरक्षण के प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण सरकार के सामाजिक न्याय ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
प्रधानमंत्री ने ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करने और समावेशिता को बढावा देने के उद्देश्य से इसका उल्लेख किया। डॉ. सिंह ने कहा कि सामाजिक न्याय के प्रति संवैधानिक अधिदेश का उद्देश्य सरकारी सेवाओं में वंचित समुदाय के योग्य उम्मीदवारों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि लैटरल एंट्री के पदों को विशेष सिंगल काडर पद के रूप में माना गया है। इन नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं रहा है। सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने पर श्री मोदी की टिप्पणी के संदर्भ में इस पहलु की समीक्षा और इसमें सुधार किए जाने की आवश्यकता है।
अपने पत्र में डॉ. सिंह ने 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा समर्थित लैटरल एंट्री का उल्लेख किया।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए, सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा है कि लैटरल एंट्री को आरक्षण के प्रावधानों के साथ जोड़ने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। श्री वैष्णव ने कहा कि प्रधानमंत्री हमेशा सामाजिक न्याय में विश्वास रखते हैं और उनके कार्यक्रमों ने समाज के कमजोर वर्गों के कल्याण को आगे बढ़ाया है। मंत्री ने यह भी कहा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन – यूपीए सरकार के दौरान आरक्षण के सिद्धांतों पर ध्यान नहीं दिया गया।