उत्तराखण्ड में मॉनसून को लेकर आगामी जुलाई माह के पहले पखवाड़े में बांधों की तैयारी और सुरक्षा व्यवस्था को परखने के लिए मॉक ड्रिल किया जाएगा। मॉक ड्रिल के तहत आपातकालीन स्थिति में सेंसर और सायरन के सही ढंग से काम करने या न करने और बांध परियोजनाओं द्वारा बनाई गई एसओपी धरातल में कितनी उपयोगी साबित होगी, इसको परखा जाएगा। आपदा प्रबंधन व पुनर्वास सचिव डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा की अध्यक्षता में सचिवालय में बांध परियोजनाओं के संबंध में आयोजित बैठक में प्रदेश की बांध परियोजनाओं के प्रतिनिधियों ने मानसून के दृष्टिगत अपनी-अपनी तैयारियों के बारे में विस्तार से बताया।
डॉ. सिन्हा ने कहा कि बांधों और बैराजों की सुरक्षा व्यवस्था पुख्ता होनी बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा, सभी बांध ऑटोमेटिक सेंसर लगाएं, ताकि एक निश्चित सीमा से बांध या बैराज का जल स्तर बढ़े तो सायरन खुद-ब-खुद बज जाए। उन्होंने सभी बांध परियोजनाओं के प्रतिनिधियों से कहा कि उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के साथ समन्वय के लिए नोडल अधिकारी की तैनाती करें।
डॉ. सिन्हा ने धौलीगंगा बांध परियोजना के प्रतिनिधियों से धारचूला में 360 डिग्री का पांच किलोमीटर तक की रेंज वाला साइरन लगाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि धारचूला मुख्य केंद्र है और यहां रहने वाले लोगों की सुरक्षा बहुत जरूरी है। बैठक में आपदा प्रबंधन सचिव ने उत्तर प्रदेश सिचाई विभाग के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई।
उत्तराखंड में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के नियंत्रण के अधीन बांध और बैराजों में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम नहीं लगाने पर कारण बताओ नोटिस जारी करने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ग्लेशियरों और झीलों के अध्ययन के लिए जल्द एक दल भेजा जाएगा।