“सतत भविष्य के लिए स्वदेशी ज्ञान प्रणाली: विकसित भारत-2047 के लिए रोडमैप” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन आज ठुनाग, मंडी जिले में स्थित बागवानी एवं वानिकी महाविद्यालय (COH&F) में संपन्न हुआ। इस सम्मेलन का आयोजन डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय पारिस्थितिकी समाज (Indian Ecological Society) के सहयोग से किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के Vision Viksit Bharat@2047 पहल के अंतर्गत तथा JICA के प्रायोजन में आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन का उद्देश्य भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को एक विकसित और सतत राष्ट्र निर्माण में योगदान देने के लिए शोध एवं विचार-विमर्श करना था। यह आयोजन भारत की स्वतंत्रता की शताब्दी वर्ष 2047 के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए किया गया। सम्मेलन में आठ राज्यों से 130 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें शिक्षाविद, वैज्ञानिक, नीति-निर्माता और क्षेत्र विशेषज्ञ शामिल थे। चर्चा का मुख्य बिंदु स्वदेशी परंपराओं और आधुनिक तकनीकों के समावेश पर रहा।
मुख्य अतिथियों के विचार
धर्मपुर से विधायक चंदर शेखर, जिन्होंने उद्घाटन भाषण दिया, ने पर्यावरणीय रूप से सतत जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विकास अनिवार्य है, लेकिन इसे पारिस्थितिक संरक्षण के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।
डॉ. संजय चौहान, विश्वविद्यालय में अनुसंधान निदेशक और भारतीय पारिस्थितिकी समाज के राष्ट्रीय सचिव, ने संस्थानों की वित्तीय आत्मनिर्भरता के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि विकास आवश्यक है, लेकिन समाज को अपनी वास्तविक आवश्यकताओं के अनुसार इसकी दिशा और दायरा तय करना होगा।
मंडलीय वन अधिकारी (DFO) सुरेंद्र सिंह कश्यप ने जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को कम करने में वन संरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने सतत पर्यावरणीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वनों के संरक्षण को आवश्यक बताया।
तकनीकी सत्रों में विशेषज्ञों के विचार
सम्मेलन में पांच तकनीकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें सतत कृषि, पर्यावरण संरक्षण, पारंपरिक कलाओं और आयुर्वेदिक प्रथाओं के समावेश जैसे प्रमुख विषयों पर चर्चा की गई।
प्रमुख वक्ताओं के विचार:
• प्रो. प्रदीप कुमार (डीन-एकेडमिक्स, सेंट्रल यूनिवर्सिटी) ने भारत की समृद्ध वैज्ञानिक और तकनीकी विरासत पर चर्चा करते हुए राष्ट्रीय विकास में नवाचार की भूमिका को रेखांकित किया।
• आशीष गुप्ता (संस्थापक ट्रस्टी, ग्राम दिशा ट्रस्ट) ने भारत में प्राकृतिक खेती उत्पादों की बाजार संभावनाओं और हिमाचल प्रदेश में विकसित औषधीय भांग के प्रमाणन पर प्रकाश डाला।
• प्रशांत (प्रबंध निदेशक, बायोस्पार्क) ने भांग की औषधीय महत्ता और इसके वैश्विक उत्पादन पर विस्तृत जानकारी दी।
• प्रो. डी.आर. ठाकुर (निदेशक, UGC MMTTC) ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के वैज्ञानिक प्रमाणों पर जोर दिया।
• डॉ. के.टी. पार्थिबन (पूर्व डीन, फॉरेस्ट कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, मेट्टुपालयम) ने मिश्रित लकड़ी, उच्च मूल्यवान लकड़ी उत्पादों और संबंधित क्षेत्रों में भारत की अग्रणी भूमिका पर चर्चा की।
• डॉ. सुशील कपटा (हिमाचल प्रदेश JICA वानिकी परियोजना विशेषज्ञ) ने वन क्षेत्र की सांख्यिकी, कानूनी वर्गीकरण और विश्व बैंक तथा JICA द्वारा वित्तपोषित वानिकी गतिविधियों पर व्यापक जानकारी दी।
• पद्मश्री नेक राम शर्मा ने स्वदेशी पारंपरिक तकनीकों और सतत खाद्य प्रथाओं पर जोर देते हुए प्राकृतिक खेती और पारंपरिक अनाज उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया।
• डॉ. पंकज सूद (प्रधान वैज्ञानिक, KVK मंडी) ने विभिन्न पारंपरिक भारतीय प्रथाओं और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों के वैज्ञानिक आधार पर प्रकाश डाला।
सम्मेलन का समापन और निष्कर्ष
सम्मेलन का समापन एक पैनल चर्चा के साथ हुआ, जिसमें स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को सतत भविष्य के लिए एकीकृत करने के तरीकों पर विचार-विमर्श किया गया। आयोजन समिति के अधिकारियों द्वारा प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया।
इस सम्मेलन ने इस बात को रेखांकित किया कि पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक प्रथाओं के समावेश से ही विकसित और सतत भारत-2047 के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।