भारत और यूरोपीय संघ की मानवाधिकार 11वीं वार्ता आज नई दिल्ली में आयोजित की गई। वार्ता की सह-अध्यक्षता विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव पीयूष श्रीवास्तव और भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत हर्वे डेल्फ़िन ने की। वार्ता के दौरान, भारत और यूरोपीय संघ ने लोकतंत्र, स्वतंत्रता, कानून के शासन और सभी मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण तथा साझा सिद्धांतों और मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने सभी मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता, अविभाज्यता, परस्पर निर्भरता और अंतर्संबंधता पर जोर दिया।
दोनों पक्षों ने अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण सभा की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और संगठनों और पत्रकारों तथा अन्य हितधारकों की स्वतंत्रता, स्वतंत्रता और विविधता की रक्षा करने पर सहमति व्यक्त की। यूरोपीय संघ ने मृत्युदंड पर अपना विरोध दोहराया। भारत ने विकास के अधिकार को एक विशिष्ट, सार्वभौमिक, अविभाज्य और मौलिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने का अपना रुख स्पष्ट किया।
दोनों पक्षों ने नागरिक और राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों के सरंक्षण तथा भेदभाव के सभी रूपों को खत्म करने पर चर्चा की। धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता, धार्मिक घृणा का मुकाबला करने, अभिव्यक्ति और राय की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दों पर भी विचार-विमर्श हुआ। दोनों पक्षों ने प्रवासियों के अधिकारों और व्यापार और मानवाधिकारों पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।
भारत और यूरोपीय संघ ने मानवाधिकारों की सुरक्षा और संवर्धन के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार तंत्र को मजबूत करने के महत्व का उल्लेख किया। दोनों पक्षों ने बहुपक्षीय मंचों विशेषकर संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।