यूं तो शहद गुणों का खजाना है, लेकिन बैतूल के आदिवासियों के लिए यह शहद ज़िंदगी मे भी मिठास भर रहा है। वन विभाग ने 10 गांव के 200 आदिवासी परिवारों को प्रशिक्षित किया और अब यही आदिवासी आर्गनिक शहद से अपने ओर परिवार के जीवन मे सुख घोल रहे है। इन आदिवासियों ने बीते वर्ष 80 क्विंटल शहद बेचा था और इस वर्ष इनका लक्ष्य 150 क्विंटल का है
वन विभाग से मिली शहद तोड़ने की ट्रेनिंग ओर किट ने आदिवासियों की ज़िंदगी बदल दी है। सीज़न में यह आदिवासी शहद तोड़कर वन समिति में देते है। जंहा से उन्हें अच्छा पैसा मिल जाता है। आदिवासी राजू सेलुकर अपनी टीम के साथ शहद निकालने का काम करते हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस वर्ष एक-एक सदस्य 50 से 60 हजार रुपये कमा लेगा।
पश्चिम वन मण्डल की नान्दा समिति आदिवासियों से शहद लेकर वन मेलो के अलावा विंध्य हर्बल सोसायटी को देते है जो कि इसे अच्छे दामो में बाज़ार में बेचते है। नान्दा समिति में कुल 10 गांव की 40 समितिया है। पहले आदिवासी यह शहद बिचौलियों को 150 रुपये किलो बेच देते थे। वन विभाग आर्गेनिक शहद होने की वजह से 225 रुपये किलो एमएसपी पर खरीद रहा है।