केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इस फैसले के तहत प्राकृत के साथ मराठी, पाली, असमिया और बांग्ला भाषाओं को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया गया है। वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर फूलचंद जैन ने सरकार के इस निर्णय की सराहना की है।
अभी भारत सरकार ने जो प्राकृत भाषा के लिए क्लासिकल हैंग्वेज यानी शास्त्रीय भाषा घोषित किया है, वह एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है प्राकृत भाषा के विकास के लिए क्योंकि प्राकृत भाषा अपने समय में सबसे प्राचीन काल में जनभाषा रही है। अशोक के लगभग दो हजार के आसपास शिलालेख मिलते हैं। उन्होंने जो आदेश लिखाये थे वो प्राकृत भाषा और ब्राहमी लिपि में लिखाये थे, तो इससे प्रमाणित होता है कि ये जनभाषा रही है और इसका बहुत विषाल साहित्य है, इस समय उपलब्ध है। — प्रोफेसर फूलचंद जैन