पर्वतीय क्षेत्रों में जोखिम मूल्यांकन और चुनौतियां विषय पर देहरादून में राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया गया। हिमालयन सोसायटी ऑफ जियो साइंटिस्ट और उत्तराखण्ड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र (यू.एल.एम.एम.सी) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सेमिनार का उद्देश्य आपदा से जुड़ी विभिन्न चुनौतियों के प्रति समझ को बढ़ाना और जोखिमों को प्रभावी रूप से कम करने के लिए रणनीति विकसित करना था। सेमिनार में सचिव, आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विनोद कुमार सुमन ने आपदा से निपटने और इससे बचाव के लिए पूर्व तैयारियों पर विशेष जोर दिया।
उन्होंने कहा कि आपदाओं के लिहाज से उत्तराखंड समेत अन्य हिमालयी राज्य बेहद संवेदनशील हैं और इसे ध्यान में रखते हुए काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आपदा के तीन चरण होते हैं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण चरण आपदा पूर्व तैयारी का है। आपदाओं का सामना करने के लिए जितनी अच्छी तैयारी होगी, प्रभाव उतना ही कम होगा। श्री सुमन ने कहा कि आपदाओं का सामना करने के लिए गोल और रोल दोनों स्पष्ट होने जरूरी है। भारत सरकार ने आईआरएस सिस्टम बनाया है, जिसे अपनाकर यह दोनों लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में विभिन्न आपदाओं से लड़ने में रिस्पांस टाइम कम हुआ है।