पंजाब में धान की पराली जलाने की घटनाओं में 2021 की तुलना में वर्ष 2024 में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है और यह 85 प्रतिशत तक पहुँच गई है। यह तीव्र गिरावट कड़े प्रवर्तन, फसल अवशेष प्रबंधन के लिए मशीनरी की उपलब्धता और कुछ नए नीतिगत हस्तक्षेपों के संयोजन के कारण धीरे-धीरे प्राप्त हुई है। 2021 में पंजाब में पराली जलाने के दर्ज मामलों की संख्या 71 हजार 304 थी, जो वर्ष 2024 में घटकर 10 हजार 909 रह गई है।
यह जानकारी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कल लोकसभा में हरियाणा से सांसद कुमारी शैलजा को एक लिखित उत्तर में दी।
साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि किसानों द्वारा पराली जलाना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण नहीं है। उन्होंने कहा कि यह कई कारकों का परिणाम है, जिनमें वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण, निर्माण और विध्वंस गतिविधियों से निकलने वाली धूल, सड़क की धूल, बायोमास जलाना और नगरपालिका के ठोस कचरे को जलाना शामिल है। हालाँकि, उन्होंने कहा कि उत्तरी राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के एनसीआर जिलों और एनसीआर के अन्य क्षेत्रों में धान की पराली जलाने की घटनाएँ चिंता का विषय हैं और एनसीआर में वायु गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं, खासकर अक्टूबर और नवंबर की अवधि में।
इस बीच, हरियाणा में पराली जलाने के 1 हजार 406 मामलों के साथ वर्ष 2024 में लगभग 80 प्रतिशत मामलों की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि वर्ष 2021 में ऐसे मामलों की संख्या 6 हजार 987 थी।
श्री सिंह ने कहा कि सरकार ने पराली जलाने से होने वाले वायु प्रदूषण की जाँच और नियंत्रण के लिए धान की पराली के इन-सीटू प्रबंधन के लिए मशीनरी पर सब्सिडी देने के अलावा हाल के वर्षों में कई उपाय लागू किए हैं।