मोबाइल ऐप्प
डाउनलोड करें

android apple
Listen to live radio

जुलाई 11, 2024 6:04 अपराह्न

printer

त्रिदेव औषधि पौध उत्पादक किसान समूह, रोहल, रोहडू ने औषधीय पौधों पर अच्छी कृषि पद्धतियों और अच्छी फील्ड संग्रहण पद्धतियों के लिए हिमाचल प्रदेश में पहली बार प्रमाणन हासिल कर इतिहास रचा

त्रिदेव औषधि पौध उत्पादक किसान समूह, रोहल, रोहडू ने औषधीय पौधों पर अच्छी कृषि पद्धतियों (जीएपी) और अच्छी फील्ड संग्रहण पद्धतियों (जीएफसीपी) के लिए हिमाचल प्रदेश में पहली बार प्रमाणन हासिल कर इतिहास रचा है। इस प्रमाणन के साथ यह संस्था जीएपी और जीएफसीपी प्रमाणीकरण प्राप्त करने वाली प्रदेश की पहली संस्था बन गई है। यह प्रमाणन फरवरी, 2027 तक वैध रहेगा।

इस संबंध में जानकारी देते हुए क्षेत्रीय निदेशक आरसीएफसी-एनआर 1, राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार स्थित जोगिन्दर नगर डॉ. अरुण चंदन ने बताया कि त्रिदेव औषधि पौध उत्पादक किसान समूह के कृपाल सिंह और उनकी टीम को आज जोगिंदर नगर में अच्छी कृषि पद्धतियों (जीएपी) और अच्छी फील्ड संग्रहण पद्धतियों (जीएफसीपी) के लिए प्राप्त प्रमाणन संबंधी प्रमाण पत्र सौंपे गए। उन्होंने औषधीय पौधों की खेती और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में यह उपलब्धि हासिल करने के लिए कृपाल सिंह और उनके समूह को बधाई दी तथा उम्मीद जताई कि इस क्षेत्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए वे मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे।

डॉ. अरुण चंदन ने बताया कि जीएपी और जीएफसीपी प्रमाणीकरण, जड़ी-बूटियों की खेती और संग्रहण के तहत एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है। खेती (जीएपी) प्रमाणन के तहत कवर किया गया क्षेत्र 40 हेक्टेयर तक फैला है, जिसमें 94 किसान शामिल हैं। कुटकी और आतिश प्राथमिक फसलें हैं। इसी तरह संग्रहण (जीएफसीपी) प्रमाणन के तहत कवर किया गया क्षेत्र 60 हेक्टेयर तक फैला हुआ है, जिसमें 74 किसान शामिल हैं। सुगंधवाला, चोरा, महामेदा, धूप और चुकरी मुख्य फसलें हैं।

उन्होंने बताया कि वर्तमान में इस संस्था में 15 सदस्य शामिल हैं, जिनमें से पांच समर्पित अधिकारी दिन-रात योगदान दे रहे हैं। उन्होंने किसानों को शिक्षित करने और विविध औषधीय पौध प्रजातियों के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिए कई पहलों को अंजाम दिया है। आयुष विभाग से 300 सब्सिडी प्राप्त किसानों सहित 500 किसानों के साथ जुड़े हुए कृपाल सिंह के प्रयासों ने किसानों की आजीविका को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कुटकी, महामेदा, आतिश और अन्य औषधीय पौधों की खेती अब उनकी खेती प्रथाओं का हिस्सा बन गई है, जिससे हर साल पर्याप्त लाभ होता है।