जाने-माने पर्यावरणविद्, वन्यजीव विशेषज्ञ और पद्मश्री मारुति चितमपल्ली का 93 वर्ष की आयु में महाराष्ट्र के सोलापुर में आयु संबंधी रोगों के कारण निधन हो गया। उन्हें ‘अरण्य ऋषि’ के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने अपना जीवन वन, वन्यजीव और साहित्य संरक्षण को समर्पित कर दिया। चितमपल्ली को इस वर्ष 30 अप्रैल को राष्ट्रपति ने पद्मश्री से सम्मानित किया था।
चितमपल्ली ने 36 वर्षों की वन विभाग की सेवा के दौरान शोध और दस्तावेज़ीकरण के लिए पूरे देश में पांच लाख किलोमीटर से अधिक की यात्राएं की। वे 13 भाषाओं में पारंगत थे, उन्होंने आदिवासी समुदायों के साथ जुड़ने और मूल्यवान पारिस्थितिक और पर्यावरणीय डेटा एकत्र करने के लिए अपने भाषाई कौशल का उपयोग किया। उनकी डायरियों ने ‘पक्षीकोश’, ‘पशुकोश’ और ‘मत्स्यकोश’ जैसे उनके वैज्ञानिक कार्यों की नींव रखी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि उनके निधन से देश की पर्यावरण और साहित्यिक विरासत में एक गौरवशाली अध्याय का अंत हो गया है। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, अजीत पवार, वन मंत्री गणेश नाइक ने भी मारुति चितमपल्ली को श्रद्धांजलि दी।