अक्टूबर 7, 2024 9:57 अपराह्न

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केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पाली प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिये जाने के निर्णय का BHU के वरिश्ठ प्रोफेसर डॉ0 सिद्धार्थ सिंह ने स्वागत किया

केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पिछले दिनों पाली प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिये जाने के निर्णय का बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पाली और बौद्ध अध्ययन विभाग के वरिश्ठ प्रोफेसर डॉ0 सिद्धार्थ सिंह ने स्वागत किया है। प्रोफेसर सिंह ने आकाषवाणी समाचार से विषेश बातचीत में कहा कि यह भाषा विशेष रूप से जैन और बौद्ध ग्रंथों के क्षेत्र में भारत की समृद्ध साहित्यिक विरासत के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करेगी।

उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म का समूचा साहित्य पाली भाषा और साहित्य में निहित है और जैन धर्म का सम्पूर्ण साहित्य प्राकृत भाषा में समाहित है। इस प्राकृत भाशा और साहित्य और पाली भाशा और साहित्य के माध्यम से भारत पूरे विश्व से जुड़ा हुआ है। ऐसे में जब ये शास्त्रीय भाषा के तौर पर पाली और प्राकृत स्वीकृत हो गयी है तो मैं उम्मीद करता हूँ कि आगे आने वाले भविष्य में सिविल सर्विसेज के एग्जाम में यू पी एस सी में भी इन भाषाओं को स्थान मिले जिससे कि लोगो की रूचि पैदा हो, इन कॉम्पिटिशन के माध्यम से भारत के तमाम शैक्षणिक संस्थानों में उच्च शैक्षणिक संस्थानों में पाली और प्राकृत भाषा के विभाग खोले, जिससे की आज की युवा पीढ़ी हमारे प्राचीन भारत को संस्कृत साहित्य के माध्यम से तो जानती ही थी, पाली और प्राकृत भाषा के माध्यम से, उसके साहित्य के माध्यम से समूचे रूप में जान सके।