अप्रैल 2, 2025 5:35 अपराह्न

printer

उत्तराखंड के पारंपरिक चरवाहे, अनवाल, अपने वार्षिक प्रवास पर मैदान से पहाड़ों की ओर लौट रहे हैं

उत्तराखंड के पारंपरिक चरवाहे, अनवाल, इन दिनों अपने वार्षिक प्रवास पर मैदान से पहाड़ों की ओर लौट रहे हैं। तराई-भाबर के जंगलों से हिमालयी बुग्यालों की ओर अनवालों की यात्रा जारी है। गर्मियों में हिमालयी क्षेत्र के बुग्यालों में भेड़-बकरियाँ चराने के लिए निकले ये चरवाहे हर साल यहाँ छह महीने प्रवास करते हैं। अनवाल उत्तराखंड में एक ऐसा समुदाय है, जो भेड़-पालन करता है।

 

माना जाता है कि भेड़ों से ऊन निकालने के कारण इन्हें ऊनवाल कहा जाता रहा होगा, जो कालांतर में अनवाल हो गया। लगभग एक हज़ार भेड़ लेकर फ़रवरी के अंतिम सप्ताह में हल्द्वानी के गौलापार से निकला अनवालों का यह दल बागेश्वर पहुँचा है।

 

अगले दस दिन में अनवालों का यह दल पिथौरागढ़ ज़िले में प्रवेश करेगा और मुनस्यारी में कुछ माह रहने के बाद वहाँ से जोहार के बुग्यालों में छह महीने बिताकर मैदानों की ओर लौटेगा।