राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि आध्यात्मिकता पर आधारित हमारी संस्कृति ने विश्व बन्धुत्व की भावना को अपने केन्द्र में रखा है। आज शाम हैदराबाद में कान्हा शांति वनम में चार दिवसीय आध्यात्मिक महोत्सव को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत किसी एक दर्शन को सही और अन्य को गलत सिद्ध नही करता और सत्य तक पहुंचने के सभी माध्यमों ‘सर्वत्र समदर्शन’ का सम्मान करता है। । उन्होंने कहा कि समभाव की यह भावना हमारी आध्यात्मिक परंपरा का आधार है।
राष्ट्रपति ने कहा कि नैतिकता और आध्यात्मिकता पर आधारित जीवन व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर लाभप्रद है। हमारी परंपरा में अध्यात्म और नैतिकता को दैनिक जीवन का आधार माना गया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, जगद्गुरु शंकराचार्य, संत कबीर, संत रविदास और गुरु नानक से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक भारत के आध्यात्मिक गुरूओं ने हमेशा विश्व समुदाय का आध्यात्मिक पुनरुत्थान किया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राजनीति में भी आध्यात्मिक मूल्यों को समाहित करने के कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को साबरमती का संत कहा जाता था।
महोत्सव में केंद्रीय संसदीय कार्य एवं संस्कृति राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, आध्यात्मिक नेता दाजी, त्रिदंडी चिनजियार स्वामी, पतंजलि के बालकृष्ण महाराज और अन्य धर्मों के आध्यात्मिक गुरुओं ने भाग लिया।