हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर के गांव बरोआ में रहने वाले 63 वर्षीय अश्वनी कुमार गुप्ता और 60 वर्षीय राज कुमार गुप्ता नेत्रहीन होते हुए भी समाज के लिए एक मिसाल बनकर उभरे हैं। ये दोनों सगे भाई बचपन से ही दृष्टिहीन हैं, लेकिन इस शारीरिक चुनौती के बावजूद उन्होंने अपने आत्म-सम्मान और संघर्ष की मिसाल कायम की है। बचपन से ही नेत्रहीन होने के बावजूद, उन्होंने अपनी शारीरिक कमजोरी को कभी भी अपनी राह का रोड़ा नहीं बनने दिया। दोनों भाई अपने-अपने जनरल स्टोर को न केवल सफलता से चला रहे हैं, बल्कि अपने परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
स्वाभिमान और आत्मसम्मान से जीवन यापन
अश्वनी और राजकुमार ने यह साबित कर दिया है कि किसी भी व्यक्ति की कमजोरी उसकी सफलता में बाधा नहीं बन सकती, बशर्ते उसके अंदर दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास हो। दोनों भाई अपनी दुकान को बिना किसी सहायता के संचालित करते हैं। ग्राहकों की मांगों को पूरा करने में उनकी महारत काबिले तारीफ है। आश्चर्य की बात यह है कि वे बिना आंखों की रोशनी के भी पैसे की पहचान सिर्फ उसे छूकर ही कर लेते हैं। उनकी यह क्षमता न केवल उनकी अद्वितीयता को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि शारीरिक सीमाएं आत्मनिर्भरता के मार्ग में कभी भी अवरोध नहीं बन सकती।
समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत
अश्वनी और राजकुमार गुप्ता न केवल दिव्यांगजनों के लिए, बल्कि समाज के हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, जो शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के बावजूद हमेशा अपनी परिस्थितियों को लेकर शिकायतें करता रहता है। उन्होंने यह साबित किया है कि इच्छाशक्ति और मेहनत से हर चुनौती का सामना किया जा सकता है।
सम्मान और प्रेरणा
उनके इस अदम्य साहस और आत्मनिर्भरता को सलाम करते हुए, इंडियन आयल और कर्तव्यनिष्ठ संस्था ने इन्हें सम्मानित करने का निर्णय लिया है। अश्वनी कुमार गुप्ता और राजकुमार गुप्ता को 18 सितंबर 2024 को चंडीगढ़ के टैगोर थियेटर में इंडियन आयल “हौंसले की उड़ान 2024” अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। यह सम्मान उन लोगों के लिए प्रेरणा बनेगा जो जीवन की चुनौतियों के सामने हार मानने के बजाय उनका सामना करने के लिए तैयार हैं।
कर्तव्यनिष्ठ संस्था के संयोजक संजीव राणा कहते हैं कि अश्वनी और राजकुमार की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि चाहे कैसी भी परिस्थितियां क्यों न हों, आत्मविश्वास और स्वाभिमान से जीवन को जिया जा सकता है। उनकी यह यात्रा हमें प्रेरित करती है कि हमें जीवन की हर चुनौती को स्वीकार कर उसे अपने हौंसले की उड़ान में बदलना चाहिए।