शारजाह में इंक्लूजन इंटरनेशनल की 18वीं विश्व कांग्रेस में अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगता अधिकार नेताओं ने भारत की विधायी प्रगति की सराहना की और साथ ही दिव्यांगजनों को प्रभावित करने वाली जलवायु संवदेनशीलता पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया। “वी आर इंक्लूजन” विषय पर आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन में 74 देशों के 500 से अधिक प्रतिभागी वैश्विक दिव्यांगता समावेशन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एकत्रित हुए।
इंक्लूजन इंटरनेशनल यूनाइटेड किंग्डम के कार्यकारी निदेशक जेमी कुक ने सम्मेलन में भारत की हालिया विधायी प्रगति के महत्व पर ज़ोर दिया। कुक ने कहा कि भारत में रोज़गार और अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों तक दिव्यांगजनों की पहुँच में विधायी प्रगति हुई है।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम- यूएनडीपी के अरब राष्ट्र सद्भावना दूत माइकल हद्दाद ने सम्मेलन के दौरान उन्होंने अरब राष्ट्र क्षेत्र और जलवायु कार्रवाई में भारत के महत्वपूर्ण योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन दिव्यांगों को असमान रूप से प्रभावित करता है और जलवायु नीति-निर्माण तथा कार्य योजनाओं में दिव्यांगों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन हम सभी को प्रभावित कर रहा है, लेकिन दिव्यांग जन इसमें सबसे ऊपर हैं। सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने दिव्यांगजनों के समक्ष पर्यावरणीय चुनौतियाँ जैसी बाधाओं पर चर्चा की।
भारत का दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 दिव्यांगजन अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुरूप है और इसमें मान्यता प्राप्त दिव्यांगता श्रेणियों को सात से बढ़ाकर 21 कर दिया है। इस कानून में दिव्यांगजनों के लिए सरकारी नौकरियों में चार प्रतिशत और उच्च शिक्षा संस्थानों में पाँच प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य बनाया गया है। अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से प्रेरित नई शिक्षा नीति 2020 समावेशी शिक्षा पर बल देती है, जबकि विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाएँ प्री-मैट्रिकुलेशन से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक के छात्रों की सहायता करती हैं। पीएम-दक्ष योजना के अंतर्गत दिव्यांगजनों को व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्लेसमेंट की सुविधा प्रदान की जाती है।