राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा है कि मध्यस्थता अधिनियम के अंतर्गत विवाद समाधान तंत्र को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी बनाना चाहिए। इससे पंचायतों को गांवों में विवादों को सुलझाने और मध्यस्थता करने के लिए कानूनी रूप से सशक्त बनाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि गांवों में सामाजिक सद्भाव राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए अनिवार्य है।
नई दिल्ली में भारतीय मध्यस्थता संघ के शुभारंभ और राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन में राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता न्याय प्रदान करने का एक अनिवार्य अंग है, जो देश के संविधान के मूल में है। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता न केवल विचाराधीन मामले में, बल्कि अन्य मामलों में भी बड़ी संख्या में मुकदमों के न्यायालयों पर बोझ को कम करके न्याय दिलाने में तेजी ला सकता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि यह समग्र न्यायिक प्रणाली को और अधिक कुशल बना सकता है तथा व्यापार करने और जीवन जीने में आसानी ला सकता है। राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता संवाद, समझ और सहयोग को बढ़ावा देती है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा कि पिछले दो दशकों में मध्यस्थता ने विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने बताया कि 2016 से 2025 के बीच मध्यस्थता के जरिए सात लाख 57 हजार से अधिक मामलों का निपटारा किया गया। उन्होंने कहा कि इस उपलब्धि के बावजूद मध्यस्थता अभी भी घरों और गांवों तक नहीं पहुंच पाई है क्योंकि यह अभी भी हाशिये पर है।
कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि केंद्र सरकार ने मध्यस्थता अधिनियम, 2023 को लागू किया है। इससे मध्यस्थता के माध्यम से विवादों के समाधान के लिए एक समर्पित पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित किया गया है।
सम्मेलन में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी सहित कई लोग शामिल हुए।