सर्वोच्च न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य को जारी रखने की अनुमति दे दी है। न्यायालय ने न्याय के हित में निर्वाचन आयोग से कहा कि उसे मौजूदा पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे मुख्य पहचान पत्रों को स्वीकार करने पर भी विचार करना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि बिहार में निर्वाचन आयोग द्वारा किए जा रहे मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य संविधान के दायरे में है। लेकिन न्यायालय ने विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य के समय पर प्रश्न उठाया है। न्यायालय ने कहा है कि पुनरीक्षण कार्य बिहार विधानसभा चुनाव के लिए ही क्यों हो रहा है और इसे पूरे देश में लागू क्यों नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि निर्वाचन आयोग को अगर नागरिकता की ही जांच करनी थी तो उसे यह कार्य पहले करना चाहिए था।
संशोधित मतदाता सूची का मसौदा अगस्त में प्रकाशित किया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को नियमित खण्डपीठ के समक्ष 28 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को एक सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है। शीर्ष न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को भी 28 जुलाई से पहले अपना प्रत्युत्तर हलफनामा दायर करने को कहा है।
याचिकाकर्ताओं ने निर्वाचन आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य में दस्तावेजों की सूची से आधार कार्ड को हटाने पर सवाल उठाया है। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि भारत में मतदाता होने के लिए नागरिकता की जांच जरूरी है और आधार को नागरिकता के प्रमाण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस पर न्यायालय ने कहा कि निर्वाचन आयोग को इस अभियान के जरिए अगर नागरिकता की ही जांच करनी थी तो यह पहले किया जाना चाहिए था। न्यायालय ने कहा कि नागरिकता का मुद्दा गृह मंत्रालय के दायरे में आता है।
सोमवार को शीर्ष न्यायालय ने बिहार में आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण कार्य के खिलाफ दायर याचिकाओं पर त्वरित सुनवाई पर सहमति व्यक्त की थी। न्यायालय में दायर कई याचिकाओं में दावा किया गया है कि अगर विशेष गहन पुनरीक्षण को खारिज नहीं किया जाता तो इससे मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाता वोट देने से वंचित रह जाएंगे।
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