संस्कृति मंत्रालय ने हांगकांग में सोथबी द्वारा पवित्र पिपरहवा बौद्ध अवशेषों की नीलामी को स्थगित करने में सफलता प्राप्त की है। यह नीलामी आज होनी थी। पिपरहवा अवशेषों की खुदाई 1898 में विलियम क्लैक्सटन पेप्पे द्वारा की गई थी। इनमें बुद्ध की अस्थियों के टुकड़े, साबुन के पत्थर और क्रिस्टल के ताबूत और सोने के आभूषण तथा रत्न जैसे चढ़ावे शामिल हैं। ताबूतों में से एक पर ब्राह्मी लिपि में एक शिलालेख इनकी पुष्टि करता है कि ये बुद्ध के अवशेष हैं, जिन्हें शाक्य वंश द्वारा जमा किया गया था। इनमें से अधिकांश अवशेषों को 1899 में भारतीय संग्रहालय, कोलकाता में स्थानांतरित कर दिया गया था और उन्हें भारतीय कानून के तहत ‘एए’ पुरावशेषों के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो उन्हें हटाने या बेचने पर रोक लगाता है। अस्थि अवशेषों का एक हिस्सा सियाम के राजा को उपहार में दिया गया था, जबकि अंतिम संस्कार के लिए रखे गए रत्नों का एक चयन डब्ल्यू.सी. पेप्पे के परपोते क्रिस पेप्पे को नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया गया था।
संस्कृति सचिव के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने कल सोथबी के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि ये अवशेष सामान्य कलाकृतियाँ नहीं हैं, बल्कि दुनिया भर के लाखों बौद्धों के लिए पवित्र महत्व रखते हैं। संस्कृति मंत्रालय, राष्ट्रीय पुरात्तव सर्वेक्षण और विदेश मंत्रालय के सहयोग से अब अवशेषों को भारत वापस लाने पर चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को शामिल करेगा।
मीडिया की खबरों से नीलामी का पता चलने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने दो मई को हांगकांग के महावाणिज्य दूतावास को पत्र लिखकर नीलामी को तुरंत रोकने का अनुरोध किया था। उसी दिन द्विपक्षीय बैठक के दौरान, संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने ब्रिटेन की संस्कृति, मीडिया और खेल सचिव लिसा नंदी के समक्ष इस मामले को उठाया और अवशेषों के सांस्कृतिक तथा धार्मिक महत्व पर ज़ोर देते हुए तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया। विदेश मंत्रालय से अनुरोध किया गया कि वह नीलामी को रोकने के लिए अपने यूरोप-पश्चिम और पूर्वी-एशिया प्रभागों के माध्यम से ब्रिटेन और हांगकांग में दूतावासों से संपर्क करे।