राजनीति के क्षेत्र में गुजरात का नाम शुरू से ही सुर्खियों में रहा है। यहां से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह जैसे मजबूत नेता राजनीति में आए। लेकिन जब राजनीति में महिला सशक्तीकरण की बात हो, तो गुजरात में महिलाएं पीछे हैं।
इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि गुजरात के 60 साल के चुनावी सफर में भी आधी आबादी गुजरात विधानसभा में 10 प्रतिशत के आंकड़े को नहीं छू पाई है। 1960 में अलग गुजरात राज्य बनने के बाद 1962 में हुए पहले चुनाव में 154 सीटों में से 11 महिलाएं चुनकर विधानसभा पहुंची थीं। अब तक 13 बार हुए विधानसभा चुनाव में केवल 111 महिलाएं ही विधानसभा में पहुंच पाई हैं, जबकि दो हजार एक सौ 96 पुरुष विधायक बने हैं।
वर्ष 1985, 2007 और 2012 के विधानसभा चुनावों में 16-16 महिलाएं विधायक चुनी गई थीं। 2017 के चुनावों में इनकी संख्या घटकर 13 हो गई। वर्तमान में राज्य विधानसभा की 182 सीटों के लिए चुनाव कराया जा रहा हैं। इस चुनाव में कुल एक हजार छह सौ 21 उम्मीदवारों में से केवल 139 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं, जबकि राज्य में महिला मतदाताओं का हिस्सा 50 प्रतिशत है।
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने हमेशा की तरह इस बार भी कुछ ही महिलाओं को टिकट दिया है, लेकिन ये संख्या 2017 के चुनाव की तुलना में अधिक है। भारतीय जनता पार्टी ने जहां 2017 में 12 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था, वहीं इस बार 17 को टिकट दिया गया है। कांग्रेस ने पहले दस और अब की बार 14 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है।
आम आदमी पार्टी ने इस चुनाव में छह महिला उम्मीदवारों को अपना प्रत्याशी बनाया है। गुजरात को पहली महिला मुख्यमंत्री 2014 में मिली, जब भाजपा ने आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री बनाया। वहीं राज्य को एक साल पहले 2021 में नीमाबेन आचार्य के रूप में पहली विधानसभा अध्यक्ष मिली हैं। 27 सितंबर 2021 को उन्हें स्पीकर चुना गया।