उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रपति के विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले हालिया निर्णय पर सवाल किया। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं हो सकती कि न्यायालय, देश के राष्ट्रपति को निर्देश दे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय केवल संविधान की व्याख्या कर सकता है। श्री धनखड ने आज नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति आवास में राज्यसभा प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी कार्य करेंगे और सुपर संसद के रूप में कार्य करेंगे। श्री धनखड ने कहा कि सत्ता का प्रयोग करते समय अत्यंत संवेदनशील होने की आवश्यकता है।
उपराष्ट्रपति का यह बयान सर्वोच्च न्यायालय के राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर सहमति देने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के निर्णय के कुछ दिनों बाद आया है। श्री धनखड़ ने सत्ता के पृथक्करण के सिद्धांत पर बल देते हुए कहा कि लोगों द्वारा चुनी गई सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी होती है और कोई भी व्यक्ति प्रश्न पूछ सकता है, लेकिन कार्यकारी शासन न्यायपालिका का होने पर कोई व्यक्ति कैसे सवाल पूछ सकता है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब तीनों संस्थाओं-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को फलने-फूलने की आवश्यकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के आवास से कथित तौर पर नकदी बरामद होने की हाल की घटना के बारे में उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस मामले में गहराई तक जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को अभियोजन से छूट दी गई है।