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जनवरी 9, 2025 8:15 पूर्वाह्न

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इसरो ने स्पैडेक्स मिशन के अंतर्गत पृथ्वी की निचली कक्षा में घूम रहे उपग्रहों के डॉकिंग परीक्षण को फिर से स्‍थगित किया

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने स्पैडेक्स मिशन के अंतर्गत पृथ्वी की निचली कक्षा में घूम रहे अपने दो उपग्रहों के डॉकिंग परीक्षण को एक बार फिर स्‍थगित कर दिया है। अंतरिक्ष एजेंसी ने अपने ट्वीट में कहा कि दो उपग्रहों के बीच अत्यधिक विचलन होने पर डॉकिंग को स्थगित करने का निर्णय लिया गया। इसरो को दोनों उपग्रहों के बीच अधिक विचलन का पता तब चला जब वह दोनों के बीच की दूरी को 225 मीटर तक कम करने की कोशिश कर रहा था।

 

 

इसरो ने पहले उपग्रहों की डॉकिंग 7 जनवरी और उसके बाद आज निर्धारित की थी। उपग्रहों के बीच अप्रत्‍याशित विचलन के कारण इसरो ने समय सीमा में बदलाव किया है, जिसकी घोषणा जल्‍द की जाएगी। ट्वीट में कहा गया है कि उपग्रह SDX01 को चेजर और SDX02 को टार्गेट के नाम से भी जाना जाता है। 

 

 

इसरो ने कहा है कि दोनों उपग्रह SDX01 और SDX02 सुरक्षित हैं और सामान्य रूप से काम कर रहे हैं। इसरों ने PSLV-C60 रॉकेट से 30 दिसंबर को उपग्रहों को उनकी इच्छित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया था। 220 किलोग्राम वजनी दोनों उपग्रह पृथ्वी से 475 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा कर रहे हैं।

 

 

एक कक्षा में घूमने वाले दोनों उपग्रहों की डॉकिेंग प्रक्रिया के लिए जटिल कक्षीय कौशल की आवश्‍यकता होगी। अंतरिक्ष में दोनों उपग्रहों के बीच अंतराल को कम करने के लिए इसरों दोनों उपग्रहों में से एक पर ऑनबोर्ड प्रणोदन प्रणालियों का इस्‍तेमाल करता है। दोनों उपग्रहों के बीच संचार कायम करने के लिए एक अंतर-उपग्रह रेडियो फ्रिक्‍वेंसी लिंक को सक्रिय किया जाएगा।

 

 

आंकड़ों के आदान-प्रदान की वास्‍तविक समय-सीमा के बाद एक नियंत्रित गति पर दोनों उपग्रहों का संयोजन सम्‍भव हो सकेगा। इस मिशन के लिए इसरो द्वारा विकसित किए गए कई नए सेंसर अंतरिक्ष में दोनों उपग्रहों की डॉकिंग का मार्गदर्शन करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। चेजर उपग्रह दोनों तरफ कुंडी और क्‍लैंप की मदद से लक्षित उपग्रह के पास जाएगा। भविष्य के चंद्रयान-4 और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मिशनों के लिए डॉकिंग ऑपरेशन बहुत ज़रूरी है।

 

 

सैटेलाइट सर्विसिंग, अंतरिक्ष में सैटेलाइट की मरम्मत और स्पेस स्टेशन संचालन के लिए इस तकनीक की ज़रूरत होती है। परीक्षण सफल होने पर भारत इस तकनीक को हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश होगा।

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